डाकू और महात्मा - बोधकथा - Daku Aur Mahatma | Bodh Katha in Hindi | Moral Story in Hindi | Hindi Bodh Katha | Bodhkatha - The Study Katta

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डाकू और महात्मा - बोधकथा

Daku Aur Mahatma Bodh Katha in Hindi

Moral Story in Hindi

Bodh Katha in Hindi | Moral Story in Hindi | Hindi Bodh Katha | Bodhkatha

            बहुत पुराना किस्सा है। एक महात्मा जी जंगल से गुजर रहे थे। अचानक सामने डाकुओं का एक दल आ खड़ा हुआ। डाकुओं के सरदार ने कड़क कर कहा, 'जो भी माल-असबाब है निकालकर रख दो वरना जान से हाथ धो बैठोगे।' महात्मा जी उसे देखकर जरा भी नहीं घबराए। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा कि वह तो भिक्षा पर पलने वाले संन्यासी हैं, उनके पास कोई सामान कहां से आएगा।

            डाकुओं के सरदार ने अट्टहास करते हुए कहा कि उनके पास भले ही कुछ और न हो पर जान तो है ही, उसे ही ले लेते हैं। महात्माजी ने कहा, 'ठीक है तुम मेरी जान ले लो लेकिन मेरी एक आखिरी इच्छा पूरी कर दो।' डाकुओं के सरदार ने पहले कुछ सोचा फिर मान गया।

            उसने महात्मा जी से पूछा कि वे क्या चाहते हैं? महात्मा जी ने कहा,' सामने के पेड़ से दो पत्ते तोड़ लाओ।' डाकू पत्ते तोड़ लाया और महात्मा जी को देने लगा। महात्मा जी ने कहा,' ये पत्ते मुझे नहीं चाहिए। तुम इन्हें वापस पेड़ पर लगा आओ।'

            डाकुओं के सरदार ने हैरान होकर कहा,'यह आप क्या कह रहे हैं। कहीं टूटे हुए पत्ते भी दोबारा पेड़ पर लग सकते हैं? यह तो प्रकृति के विरुद्ध है।' महात्माजी ने समझाते हुए कहा,'यदि तुम टूटी हुई चीजों को जोड़ नहीं सकते तो कम से कम उसे तोड़ो भी मत। यदि किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसे मृत्यु देने का भी तुम्हें कोई अधिकार नहीं है।' महात्मा जी की बातें सुन कर सरदार की आंखें खुल गईं और वह अपने साथियों के साथ हमेशा के लिए लूटपाट छोड़कर एक नेक इंसान बन गया।


            तुम्हाला डाकू और महात्मा - बोधकथा - Daku Aur Mahatma | Bodh Katha in Hindi | Moral Story in Hindi | Hindi Bodh Katha | Bodhkatha ही माहिती नक्कीच आवडली असेल तर शेअर करा.

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