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Saturday, July 22, 2023

हिंदी बोध कथा | Moral Stories in Hindi | Bodh Katha in Hindi | Hindi Bodh Katha | Bodh Katha

हिंदी बोध कथा

 Moral Stories in Hindi

Bodh Katha in Hindi | Hindi Bodh Katha | Bodh Katha

हिंदी बोध कथा | Moral Stories in Hindi | Bodh Katha in Hindi | Hindi Bodh Katha | Bodh Katha

हिंदी बोध कथा ( Moral Stories in Hindi | Bodh Katha in Hindi | Hindi Bodh Katha | Bodh Katha ) :- 

            हिंदी बोध कथा ( Moral Stories in Hindi | Bodh Katha in Hindi | Hindi Bodh Katha ) बचपन को फिर से लाने का अमृत है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसका बचपन कभी न बीते। इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है लेकिन इसे खोजने का एकमात्र साधन बोध कथा ( Bodh Katha ) है। आज के युग में यदि आप अपने बच्चों में अच्छे गुण विकसित करना चाहते हैं और उनके जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो उन्हें अच्छी किताबों और बोध कथा ( Bodh Katha ) की आवश्यकता है।

            बच्चों को बोध कथा हिंदी ( Moral Stories in Hindi | Bodh Katha in Hindi | Hindi Bodh Katha ) मे नैतिक कहानियाँ ( Moral stories ) पढ़ने से उनके जीवन में बड़ा बदलाव आ सकता है। सकारात्मक नैतिक कहानियाँ ( Positive moral stories ) और प्रेरक नैतिक कहानियाँ ( Motivational Moral Stories ) पढ़ने से नकारात्मक विचार दूर हो जाते हैं। बच्चों के लिए लघु नैतिक कहानी ( Short moral story ), हिंदी में लघु कथा ( Short stories in Hindi ) और बच्चों के लिए प्रेरक लघु बोध कथा और अर्थ ( Motivational short story with meaning ) भी बहुत उपयोगी हैं। हिंदी  बोध कथा  को यदि अर्थ सहित पढ़ा जाए तो अच्छा संदेश मिलता है। साथ ही बच्चे लघु कथाएँ पढ़ते नहीं थकेंगे।

            हिंदी में कई कहानियां हैं, जिनमें आपको हिंदी में सुंदर कहानियां, हिंदी लघु कथाएं, भूत कहानियां, हिंदी प्रेम कहानियां, तेनाली राम हिंदी कहानियां, अकबर बीरबल हिंदी कहानियां, बच्चों की हिंदी कहानियां, हिंदी में महाभारत कहानियां, ईसापनीति कहानियां, संस्कार कहानियां हिंदी में मिलेंगी और हम भविष्य में ऐसी कहानियां देने की कोशिश जरूर करेंगे।


हिंदी बोध कथा

Moral Stories in Hindi | Bodh Katha in Hindi

Hindi Bodh Katha | Bodh Katha


अमृत की खोज

            ईरान के बादशाह खुसरो के प्रधानमंत्री बुर्जोई राज चिकित्सक भी थे। वह नई औषधियों पर शोध करते और उन पर लिखे ग्रंथ भी पढ़ते रहते थे। एक बार उन्हें पता लगा कि भारत में किसी पर्वत पर संजीवनी नाम की बूटी होती है, जिससे मृत व्यक्ति जीवित हो जाता है और स्वस्थ व्यक्ति यदि उसका सेवन कर ले तो वह हमेशा स्वस्थ और जवान बना रहता है।

            बुर्जोई यह सुनकर रोमांचित हो उठे। उन्होंने अपने बादशाह से भारत आने की इजाजत ली। वह भारत आए और संजीवनी बूटी की खोज में लग गए। वह अनेक पर्वतों और जंगलों में गए लेकिन कहीं भी उन्हें संजीवनी नजर नहीं आई। एक दिन वह एक पेड़ की छांव में आराम कर रहे थे, तभी एक पंडित जी वहां पहुंचे। वह बुर्जोई को देखकर बोले, 'आप परदेसी मालूम होते हैं।' बुर्जोई बोले, 'हां भई, मैं परदेसी ही हूं। मैंने सुना है कि आपके यहां संजीवनी बूटी के रूप में अमृत मिलता है। मैंने यहां बहुत तलाश किया लेकिन वह बूटी मुझे कहीं नजर नहीं आई।'   Read More



ईश्वर का दोस्त

            एक संत ने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत आया है। देवदूत के हाथ में एक सूची थी। उसने कहा, 'यह उन लोगों की सूची है, जो प्रभु से प्रेम करते हैं।' संत ने कहा, 'मैं भी प्रभु से प्रेम करता हूं। मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा।' देवदूत बोला, 'नहीं, इसमें आप का नाम नहीं है।' संत उदास हो गए। फिर उन्होंने पूछा, 'इसमें मेरा नाम क्यों नहीं है? मैं ईश्वर से ही प्रेम नहीं करता बल्कि गरीबों से भी प्रेम करता हूं। मैं अपना अधिकतर समय निर्धनों की सेवा में लगाता हूं।

            उसके बाद जो समय बचता है उसमें प्रभु का स्मरण करता हूं।' तभी संत की आंख खुल गई। दिन में वह स्वप्न को याद कर उदास थे। एक शिष्य ने उदासी का कारण पूछा तो संत ने स्वप्न की बात बताई और कहा, 'लगता है सेवा करने में कहीं कोई कमी रह गई है।' दूसरे दिन संत ने फिर वही स्वप्न देखा। वही देवदूत फिर उनके सामने खड़ा था। इस बार भी उसके हाथ में कागज था। संत ने बेरुखी से कहा, 'अब क्यों आए हो मेरे पास? मुझे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए।'  Read More  


हे पण पहा :- मराठी बोधकथा


एकता का महामंत्र

            जापान के सम्राट यामातो का एक मंत्री था-ओ-चो-सान। उसका परिवार आपसी स्नेह और सौहार्द के लिए प्रसिद्ध था। उसके परिवार में लगभग एक हजार सदस्य थे, पर उनके बीच एकता का अटूट संबंध स्थापित था। सभी सदस्य साथ रहते और साथ ही खाना खाते थे। उनमें कभी झगड़े की बात नहीं सुनी गई। ओ-चो-सान के परिवार के आपसी प्रेम की कहानी सम्राट यामातो के कानों तक भी पहुंची। उन्हें यकीन नहीं हुआ। उन्होंने सोचा, इतना बड़ा परिवार है। कभी तो खटपट हुई होगी। इस बात की जांच के लिए एक दिन वे स्वयं उस वृद्ध मंत्री के घर पहुंचे।

            स्वागत सत्कार और शिष्टाचार की साधारण रस्में समाप्त हो जाने पर उन्होंने पूछा- महाशय, मैंने आपके परिवार की एकता और सौहार्द की कई कहानियां सुनी हैं। क्या आप बताएंगे कि एक हजार से भी अधिक व्यक्तियों वाले आपके परिवार में यह स्नेह संबंध कैसे बना हुआ है? ओ-चो-सान वृद्धावस्था के कारण अधिक देर तक बातें नहीं कर सकता था। सो उसने अपने एक पोते को संकेत से कलम-दवात और कागज लाने के लिए कहा। उन चीजों के आ जाने पर उसने अपने कांपते हाथों से कोई सौ शब्द लिखकर कागज सम्राट की ओर बढ़ा दिया।   Read More

हे पण पहा :- इंग्रजी बोधकथा


एकाग्रता का महत्व

            वीर बहादुर एक सर्कस में काम करता था। वह खतरनाक शेर को भी कुछ ही समय में पालतू बना लेता था। एक दिन सर्कस में एक नौजवान आया। वह जानवरों के हाव-भाव और हरकतों पर रिसर्च कर रहा था। उसने वीर बहादुर से कहा, 'आपका बहुत नाम सुना है। खतरनाक शेर को भी पालतू कैसे बन लेते हैं आप?' वीर बहादुर ने मुस्कराते हुए कहा, 'देखो, यह कोई राज नहीं है। तुम बड़े सही मौके पर आए हो। आज ही मुझे एक खतरनाक शेर को पालतू बनाना है। वह कई लोगों को अपना शिकार बना चुका है। तुम मेरे साथ चलना और वहां खुद देखना कि मैं कैसे यह काम करता हूं।'

            नौजवान ने देखा कि वीर बहादुर ने अपने साथ न कोई हथियार लिया और न ही बचाव के लिए कोई दूसरी चीज। उसने अपने साथ बस एक लकड़ी का स्टूल लिया है। वह हैरान था कि स्टूल से वीर बहादुर खतरनाक शेर को कैसे काबू कर लेगा। शेर जैसे ही वीर बहादुर की तरफ गरज कर लपकता, वह स्टूल के पायों को शेर की तरफ कर देता।    Read More  


कर्तव्य बोध

            एक किसान को विरासत में खूब धन-संपत्ति मिली। वह दिनभर खाली बैठा हुक्का गुड़गुड़ाता और गप्प हांकता रहता। रिश्तेदार और काम करने वाले नौकर-चाकर उसके आलस्य का लाभ उठाते और उसके माल पर हाथ साफ करने में लगे रहते।

            एक दिन उसका पुराना मित्र उससे मिलने आया। यह अव्यवस्था देखकर उसे कष्ट हुआ और उसने किसान को समझाने की कोशिश की, किंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ। तब उसने किसान मित्र से कहा कि वह उसे एक महात्मा के पास ले जाएगा जो उसे अमीर होने के नुस्खे बताएंगे। यह सुनकर वह तुरंत अपने मित्र के साथ उन महात्मा के पास जा पहुंचा। महात्मा ने किसान से कहा, 'हर दिन सूर्योदय से पहले एक श्वेत नीलकंठ खलिहान, गोशाला, घुड़साल और घर में चक्कर लगाता है और बहुत जल्दी गायब हो जाता है। उस नीलकंठ के दर्शन तुम्हारे धन-संपत्ति को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। Read More  


कवि का स्वाभिमान

            एक दिन राजा मान सिंह प्रसिद्ध कवि कुंभनदास के दर्शन के लिए वेश बदलकर उनके घर पहुंचे। उस समय कुंभनदास अपनी बेटी को आवाज लगाते हुए कह रहे थे, 'बेटी, जरा दर्पण तो लाना, मुझे तिलक लगाना है।' बेटी जब दर्पण लाने लगी तो वह नीचे गिरकर टूट गया। यह देखकर कुंभनदास बोले, 'कोई बात नहीं, किसी बर्तन में जल भर लाओ।' राजा कुंभनदास के पास बैठकर बातें करने लगे और बेटी एक टूटे हुए घड़े में पानी भरकर ले आई। जल की छाया में अपना चेहरा देखकर कुंभनदास ने तिलक लगा लिया।

            यह देखकर राजा दंग रह गए। वह कुंभनदास से अत्यंत प्रभावित हुए। राजा यह सोचकर प्रसन्न थे कि कवि कुंभनदास उन्हें पहचान नहीं पाए हैं। राजा वहां से चले गए। अगले दिन वह एक स्वर्ण जड़ित दर्पण लेकर कवि के पास पहुंचे और बोले, 'कविराज, आपकी सेवा में यह तुच्छ भेंट अर्पित है। कृपया इसे स्वीकार कीजिए।' कुंभनदास विनम्रतापूर्वक बोले, 'महाराज आप! अच्छा तो कल वेश बदलकर आप ही हम से मिलने आए थे। कोई बात नहीं। हमें आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। पर एक विनती है।'  Read More  

कोयला और चंदन

            हकीम लुकमान का पूरा जीवन जरूरतमंदों की सहायता के लिए समर्पित था। जब उनका अंतिम समय नजदीक आया तो उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और कहा- बेटा, मैंने अपना सारा जीवन दुनिया को शिक्षा देने में गुजार दिया। अब अपने अंतिम समय में मैं तुम्हें कुछ जरूरी बातें बताना चाहता हूं। तुम एक कोयला और चंदन का एक टुकड़ा उठा लाओ। बेटे को पहले तो यह अटपटा लगा लेकिन उसने सोचा कि जब पिता का हुक्म है तो यह सब लाना ही होगा। उसने रसोई घर से कोयले का एक टुकड़ा उठाया। संयोग से घर में चंदन की एक छोटी लकड़ी भी मिल गई। वह दोनों लेकर अपने पिता के पास गया।

            लुकमान बोले- अब इन दोनों चीजों को नीचे फेंक दो। बेटे ने दोनों चीजें नीचे फेंक दी और हाथ धोने जाने लगा तो लुकमान बोले- ठहरो बेटा, जरा अपने हाथ तो दिखाओ। फिर वह उसका कोयले वाला हाथ पकड़कर बोले-बेटा, देखा तुमने। कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया। लेकिन उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारे हाथ में कालिख लगी रह गई। गलत लोगों की संगति इसी तरह होती है। उनके साथ रहने पर भी दुख होता है और उनके न रहने पर भी जीवन भर के लिए बदनामी साथ लग जाती है।   Read More  


गुरु और शिष्य

            नई-नई दीक्षा पाए शिष्य ने अपने गुरु से कहा, 'गुरुदेव, उपासना में बिल्कुल ही मन नहीं लग रहा। बहुत कोशिश करके भी भगवान की ओर चित्त स्थिर नहीं होता।' गुरु कुछ देर तक शिष्य को देखते रहे। लगा जैसे कुछ समझने की कोशिश में हों। बोले, 'सच ही कहते हो वत्स, यहां ध्यान लगेगा भी नहीं। कहीं और चलकर साधना करेंगे। हो सकता है वहां ध्यान लग जाए। आज शाम में ही वहां चल देंगे।'

            सूर्यास्त होते ही वे दोनों एक ओर चल पड़े। गुरु के हाथ में एक कमंडल था, शिष्य के हाथ में थी एक झोली, जिसे वह बड़ी मुश्किल से संभाले हुए चल रहा था। रास्ते में एक कुआं आया। शिष्य ने शौच जाने की इच्छा व्यक्त की। दोनों रुक गए। बहुत सावधानी से शिष्य ने झोला गुरु के पास रखा और शौच के लिए चल दिया। जाते-जाते उसने कई बार झोले पर नजर डाली। 'गड़ाम' एक तीव्र प्रतिध्वनि सुनाई दी और झोले में पड़ी कोई वस्तु कुएं में जा समाई। शिष्य दौड़ा हुआ आया और चिंतित स्वर में बोला, 'भगवन, झोले में सोने की ईंटें थीं, वो कहां गईं?' गुरु बोले, 'वो कुएं में चली गईं   Read More


 

गुरु, शिष्य और सिक्के

            कौशांबी में संत रामानंद नगर के बाहर एक कुटिया में अपने शिष्य गौतम के साथ रहते थे। नगरवासी उनका सम्मान करते हुए उन्हें पर्याप्त दान-दक्षिण दिया करते थे। एक दिन अचानक संत ने गौतम से कहा-यहां बहुत दिन रह लिया। चलो अब कहीं और रहा जाए। गौतम ने जवाब दिया-गुरुदेव, यहां तो बहुत चढ़ावा आता है। कुछ दिन बाद चलेंगे। संत ने समझाया- बेटा, हमें धन और वस्तुओं के संग्रह से क्या लेना-देना, हमें तो त्याग के रास्ते पर चलना है। यह कहकर संत गौतम को लेकर चल पड़े।

            गौतम ने जमा किए अपने कुछ सिक्के झोले में छिपा लिए। दोनों नदी तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने नाव वाले से नदी पार कराने की प्रार्थना की। नाव वाले ने कहा- मैं नदी पार कराने के दो सिक्के लेता हूं। आप लोग साधु-महात्मा हैं। आपसे एक ही लूंगा। संत के पास पैसे नहीं थे। वे वहीं आसन जमा कर बैठ गए। शाम हो गई। नाव वाले ने कहा-यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। आप कहीं और चले जाएं। सिक्के हों तो मैं नाव पार करा दूंगा। खतरे की बात सुनकर गौतम घबरा गया। उसने झट अपने झोले से दो सिक्के निकाले और नाव वाले को दे दिए।  Read More  

हे पण पहा :- हिंदी शब्द-युग्म

चिंता की मार

            दो वैज्ञानिक बातचीत कर रहे थे। उनमें एक वृद्ध और एक युवा था। वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा, 'चाहे विज्ञान कितनी भी प्रगति क्यों न कर ले, लेकिन वह अभी तक ऐसा कोई उपकरण नहीं ढूंढ पाया, जिससे चिंता पर लगाम कसी जा सके।' युवा वैज्ञानिक मुस्कराते हुए बोला, 'आप भी कैसी बातें करते हैं। अरे चिंता तो मामूली सी बात है। भला उसके लिए उपकरण ढूंढने में समय क्यों नष्ट किया जाए?' वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा, 'चिंता बहुत भयानक होती है। यह व्यक्ति का सर्वनाश कर देती है ।' लेकिन युवा वैज्ञानिक उनसे सहमत नहीं हुआ।

            वृद्ध वैज्ञानिक उसे अपने साथ घने जंगलों की ओर ले गए। एक विशालकाय वृक्ष के आगे वे खड़े हो गए। युवा वैज्ञानिक बोला, 'आप मुझे यहां क्यों लाए हैं?' वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा, 'जानते हो, इस वृक्ष की उम्र चार सौ वर्ष बताई गई है।' युवा वैज्ञानिक बोला, 'अवश्य होगी।' वृद्ध वैज्ञानिक ने समझाते हुए कहा, 'इस वृक्ष पर चौदह बार बिजलियां गिरी। चार सौ वर्षों से अनेक तूफानों का इसने सामना किया।' अब युवा वैज्ञानिक ने झुंझला कर कहा, 'आप साबित क्या करना चाहते हैं?'  Read More  


जीवन का सत्य

            एक व्यक्ति आध्यात्मिक ज्ञान की आशा में एक संत के पास पहुंचा। संत ने उसे एक राजा के पास जाने को कहा। वह व्यक्ति राजा के पास पहुंचा। राजा उसे अपने दरबार में ले गया। वहां का दृश्य देखकर वह व्यक्ति दंग रह गया। वहां नर्तकियां नृत्य कर रही थीं। लोग बैठकर मदिरा का सेवन कर रहे थे। वह घबराकर राजा से बोला- महाराज, मैं गलत जगह आ गया हूं। अब यहां मैं एक पल नहीं रुक सकता। मैं तो कुछ जिज्ञासा लेकर आया था पर आप तो स्वयं ही भटके हुए हो तो मुझे क्या मार्ग दिखाओगे।

            राजा ने कहा- मैं भटका हुआ नहीं हूं। आपने मेरा बाहरी रूप देखा है। आंतरिक देखोगे तो शायद आपकी राय बदल जाएगी। आप एक दिन रुक जाएं। वह व्यक्ति वहां रुक गया। उसे एक शानदार कमरे में ठहराया गया। उसमें काफी गद्देदार बिस्तर लगा था। वह व्यक्ति सकुचाता हुआ उस पर सोया। तभी उसकी नजर ऊपर की ओर गई। एक चमचमाती तलवार ठीक उसके सिर पर एक सूत से लटकी थी। अचानक उसके मन में ख्याल आया कि अगर धागा टूट गया तो । वह रात भर इस चिंता में सो नहीं पाया।  Read More 



जैसे को तैसा

            एक गुरु के दो शिष्य हमेशा लड़ते रहते थे। वे हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखने की कोशिश में लगे रहते।

            एक दिन गुरु ने उन्हें बुलाया और एक कथा सुनाई- एक बार एक जंगल में भैंस और घोड़े में लड़ाई हो गई। भैंस ने सींग मार- मारकर घोड़े को अधमरा कर दिया। घोड़े ने जब देख लिया कि वह भैंस से जीत नहीं सकता तब वह वहां से भागा। वह मनुष्य के पास पहुंचा।

            घोड़े ने उससे अपनी सहायता की प्रार्थना की। मनुष्य ने कहा- भैंस की बड़ी-बड़ी सींगें हैं,वह बहुत बलवान है। मैं उससे कैसे जीत सकूंगा? घोड़े ने समझाया- मेरी पीठ पर बैठ जाओ, एक मोटा डंडा ले लो। मैं जल्दी-जल्दी दौड़ता रहूंगा। तुम डंडे से मार-मारकर भैंस को अधमरी कर देना और फिर रस्सी से बांध देना। मनुष्य ने कहा- मैं उसे बांधकर भला क्या करुंगा ? घोड़े ने बताया- भैंस बड़ा मीठा दूध देती है। तुम उसे पी लिया करना। मनुष्य ने घोड़े की बात मान ली। बेचारी भैंस जब पिटते-पिटते गिर पड़ी, तब मनुष्य ने उसे बांध लिया। घोड़े ने काम समाप्त होने पर कहा-अब मुझे छोड़ दो मैं चरने जाऊंगा। मनुष्य जोर-जोर से हंसने लगा।  Read More 



डाकू और महात्मा

            बहुत पुराना किस्सा है। एक महात्मा जी जंगल से गुजर रहे थे। अचानक सामने डाकुओं का एक दल आ खड़ा हुआ। डाकुओं के सरदार ने कड़क कर कहा, 'जो भी माल-असबाब है निकालकर रख दो वरना जान से हाथ धो बैठोगे।' महात्मा जी उसे देखकर जरा भी नहीं घबराए। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा कि वह तो भिक्षा पर पलने वाले संन्यासी हैं, उनके पास कोई सामान कहां से आएगा।

            डाकुओं के सरदार ने अट्टहास करते हुए कहा कि उनके पास भले ही कुछ और न हो पर जान तो है ही, उसे ही ले लेते हैं। महात्माजी ने कहा, 'ठीक है तुम मेरी जान ले लो लेकिन मेरी एक आखिरी इच्छा पूरी कर दो।' डाकुओं के सरदार ने पहले कुछ सोचा फिर मान गया। Read More 



दुर्भाग्य का मुकाबला

            लगभग ढाई सौ साल पहले की घटना है। जापान में हवाना होकीची नामक एक बालक का जन्म हुआ। सात वर्ष की उम्र में चेचक के कारण बालक की आंखों की रोशनी चली गई। अब उसके जीवन में बिल्कुल अंधेरा हो गया था।

            कुछ दिनों तक तो होकीची इस दुर्भाग्यपूर्ण परिवर्तन को समझ नहीं पाया। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते रहे, वैसे-वैसे होकीची ने अपनी परिस्थति से समझौता कर लिया और मन में ठान लिया कि किसी भी कीमत पर हार नहीं माननी है। बालक ने पढ़ना आरंभ किया। धीरे-धीरे उसे पुस्तकों से गहरा प्रेम हो गया। पुस्तकें ही होकीची की आंखें थीं, जो उसे जीवन की राह दिखाती थीं। वह पुस्तकों को दूसरों से पढ़वा कर ज्ञान अर्जित करता था। आजीवन उसने अपना अध्ययन जारी रखा। दूसरों से पुस्तकें पढ़वा-पढ़वा कर होकीची का ज्ञान भंडार असीमित हो चुका था। फिर उन्होंने अपने ज्ञान को एक पुस्तक के रूप में समेटना चाहा। जब यह बात एक राष्ट्रीय संस्था को मालूम हुई तो उसने होकीची के ज्ञान को पुस्तक रूप में लिखवाया। Read More 


सच्चा प्रजपालक

            एक बार महाराजा अशोक के राज्य में अकाल पड़ा। जनता भूख तथा प्यास से त्रस्त हो उठी। राजा ने तत्काल राज्य में अन्न के भंडार खुलवा दिए। सुबह से लेने वालों का ताँता लगता और शाम तक न टूटता।

            एक दिन संध्या हो गई। जब सब लेने वाले निकट गए तो एक कृशकाय बूढ़ा उठा और उसने अन्न माँगा। बाँटने वाले भी थक चुके थे अतः उन्होंने उसे डाँटकर कहा-कल आना आज तो अब खैरात बंद हो गई।’’तभी एक हृष्ट-पुष्ट शरीर के नवयुवक जैसा व्यक्ति आया और बाँटने वालों से बोला-बेचारा बूढ़ा है। मैं देख रहा हूँ बड़ी देर से बैठा है यह। Read More 


एक सेवा का मूल्य

            तुर्की में जकीर नाम के एक फकीर हुए हैं। वह आईन नदी के किनारे कुटी बनाकर रहते थे। एक दिन नदी में एक सेवा बहता आ रहा था। जकीन ने उसे पकड़ लिया।अभी उसे खाने की तैयारी कर ही रहे थे कि अंतःकरण से आवाज आई ‘‘फकीर! क्या यह तेरी संपत्ति है,क्या तूने इसे परिश्रम से पैदा किया है? यदि नहीं तो इसे खाने का तुझे क्या अधिकार है?’’सेव झोले में डालकर अब फकीर अब उसके स्वामी की खोज में नदी के चढ़ाव की ओर चल पड़े।

            थोड़ी दूर पर एक सेव का बाग मिला। कुछ सेव के वृक्षों की डालें पानी को छू रही थीं,फकीर ने विश्वास किया सेव यहीं से टूटा हुआ होगा। उन्होंने बाग के स्वामी से कहा-यह लीजिए आपका सेव नदी में बहा जा रहा था।’’ उसने कहा-भाई मैं तो बाग का रखवाला मात्र हूँ,इसकी स्वामिनी तो बुखारा की राजकुमारी है।’’फकीर वहाँ से बुखारा के लिए रवाना हुआ। Read More 


सफलता का श्रेय

            सफलता का श्रेय किसे इस प्रश्न पर एक दिन विवाद उठ खड़ा हुआ। ‘संकल्प’ ने अपने को,‘बल’ ने अपने को और ‘बुद्धि’ ने अपने को अधिक महत्त्वपूर्ण बताया। तीनों अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए थे। अंत में तय हुआ कि ‘विवेक’ को पंच बना इस झगड़े का फैसला कराया जाए।तीनों को साथ लेकर विवेक चल पड़ा। उसने एक हाथ में लोहे की टेढ़ी कील ली और दूसरे में हथौड़ा। चलते-चलते वे लोग ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ एक सुंदर बालक खेल रहा था। 

            विवेक ने बालक से कहा-बेटा इस टेढ़ी कील को अगर तुम हथौड़ा से ठोक कर सीधी कर दो तो मैं तुमको भरपेट मिठाई और खिलौने से भरी एक पिटारी भी दूँ।’’ बालक की आँखें चमक उठीं। वह बड़ी आशा और उत्साह से प्रयत्न करने लगा। पर कील को सीधा कर सकना दूर उससे हथौड़ा उठा तक नहीं। भारी औजार उठाने के लायक उसके हाथों में बल नहीं था। Read More 


हे पण पहा :- विलोम शब्द

मित्रता

           उषा ने पति अनिल से कहा, कितनी देर तक समाचार पत्र पढ़ते रहोगे? यहाँ आओ और अपनी प्यारी बेटी को खाना खिलाओ। अनिल ने समाचार पत्र एक तरफ़ फेका और बेटी ईशा की और ध्यान दिया। बेटी की आंखों में आँसू थे और सामने खाने की प्लेट ईशा एक अच्छी लड़की है और अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा समझदार. अनिल ने खाने की प्लेट को हाथ में लिया और ईशा से बोला,बेटी खाना क्यों नहीं खा रही हो?.आ जाओ मैं खिलाता हूँ . ईशा जिसे खाना नहीं भा रहा था। सुबक सुबक कर रोने लगी और कहने लगी,मैं पूरा खाना खा लूँगी पर एक वादा करना पड़ेगा आपको. वादा,अनिल ने बेटी को समझाते हुआ कहा,इस प्रकार कोई महँगी चीज खरीदने के लिए जिद नहीं करते. नहीं पापा,मैं कोई महँगी चीज के लिए जिद नहीं कर रही हूँ. फिर ईशा ने धीरे धीरे खाना पूर्ण किया और कहा,मैं अपने सभी बाल कटवाना चाहती हूँ. सभी प्रकारसे समाझाने पर भी ईशा नहीं मानी और अपना वचन निभाने हेतु ईशा की बात माननी ही पड़ी। Read More 


जैसी करणी वैसे भरणी

            एक वृद्ध व्यक्ति अपने बहु – बेटे के यहाँ शहर रहने गया । उम्र के इस पड़ाव पर वह अत्यंत कमजोरहो चुका था ,उसके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम देता था । वो एक छोटेसे घर में रहते थे ,पूरा परिवार औरउसका चार वर्षीया पोता एक साथ भोजन टेबल पर खाना खाते थे । लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बड़ी दिक्कतहोती थी । कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पे बिखर जाते तो कभी हाँथ से दूध छलक कर मेजपोश पर गिर जाता। बहु -बेटे एक -दो दिन ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अपने पिता की इस काम से चिढ होने लगी ।“हमें इनका कुछ करना पड़ेगा ”,लड़के ने कहा । बहुने भी हाँ में हाँ मिलाई और बोली ,” आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा रहेंगे ,और हम इस तरह चीजों का नुक्सान होते हुए भी नहीं देख सकते ।”

            अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज को कमरे के कोने में लगा दिया ,अब बूढ़े पिता को वहीँ अकेले बैठ कर अपना भोजन करना था । यहाँ तक की उनके खाने के बर्तनों की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया था ,ताकि अब और बर्तन ना टूट -फूट सकें । बाकी लोग पहले की तरह ही आराम से बैठ कर खाते और जब कभी-कभार उस बुजुर्ग की तरफ देखते तो उनकी आँखों में आंसू दिखाई देते । Read More 


हे पण पहा :- मुहावरे

आदर्श मूर्तिकार

          एक आदमी एक निर्माणधीन मंदिर को देखने गया। तभी उन्होंने देखा की एक मूर्तिकार भगवान् की मूर्ति बना रहा हैं। वो उसके पास गए और उसे काम करते देखने लगे। तभी उन्होंने ध्यान दिया की पास में ही हुबहू एक और मूर्ति पड़ी हुई हैं। उन्होंने पूछा “क्या तुम एक जैसी दो मूर्तियाँ बना रहे हो?” मूर्तिकार अपने काम में मग्न था। उसने बिना अपना सर उठाये ही कहा “नहीं”। “तो फिर तुम दो मूर्तियाँ क्यों बना रहे हो?” ” हमें एक ही मूर्ति चाहिए पर पहली मूर्ति बनाते वक़्त थोड़ी ख़राब हो गयी।” वो अभी भी अपना काम कर रहा था। Read More 


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