एक सेवा का मूल्य - बोधकथा
Ek Seva Ka Muly Bodh Katha in Hindi
Moral Story in Hindi
तुर्की में जकीर नाम के एक फकीर हुए हैं। वह आईन नदी के किनारे कुटी बनाकर रहते थे। एक दिन नदी में एक सेवा बहता आ रहा था। जकीन ने उसे पकड़ लिया।अभी उसे खाने की तैयारी कर ही रहे थे कि अंतःकरण से आवाज आई ‘‘फकीर! क्या यह तेरी संपत्ति है,क्या तूने इसे परिश्रम से पैदा किया है? यदि नहीं तो इसे खाने का तुझे क्या अधिकार है?’’सेव झोले में डालकर अब फकीर अब उसके स्वामी की खोज में नदी के चढ़ाव की ओर चल पड़े।
थोड़ी दूर पर एक सेव का बाग मिला। कुछ सेव के वृक्षों की डालें पानी को छू रही थीं,फकीर ने विश्वास किया सेव यहीं से टूटा हुआ होगा। उन्होंने बाग के स्वामी से कहा-यह लीजिए आपका सेव नदी में बहा जा रहा था।’’ उसने कहा-भाई मैं तो बाग का रखवाला मात्र हूँ,इसकी स्वामिनी तो बुखारा की राजकुमारी है।’’फकीर वहाँ से बुखारा के लिए रवाना हुआ।
कई दिन की पैदल यात्रा के बाद वहाँ पहुँचा और वह सेव लेकर राजकुमारी जी के पास उपस्थित हुआ। फकीर को एक सेव लेकर इस तरह आने का हाल सुनकर राजकुमारी हँसकर बोली-अरे बाबा! इसको वहीं खा लेते,एक सेव यहाँ लाने की क्या आवश्यकता थी?’’फकीर ने कहा-राजकुमारी जी आपकी दृष्टि में एक सेव का कुछ भी मूल्य नहीं पर इस सेव ने तो मेरा साधा धर्म,संयम और सारे जीवन की साधना नष्ट कर दी होती।’’
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